मेरे मन तेरे पागलपन को
कौन बुझाये तेरी ठंडी अगन को
दुनिया के मेले में
घूमे अकेले तू
काहे को यादों से खेले
खुद से क्यूँ भागे रे
रातों को जागे रे
खुशियां भी गम जैसे झेले
जागती आँखों में
कैसे वो उतरे
नीदें तो दे रे सपन को
मेरे मन तेरे पागलपन को
रातों में चंदा है,
दिन में है सूरज,
हर सू उजालों के घेरे
आँखों की खाई में
छुप के जो बैठे है वो
कटते नहीं है अंधेरे
अपनी चलाता है
रोता है गाता है
काहे सताये रे तन को
मेरे मन तेरे पागलपन को
Original Post : https://www.facebook.com/KumarVishwasकौन बुझाये तेरी ठंडी अगन को
दुनिया के मेले में
घूमे अकेले तू
काहे को यादों से खेले
खुद से क्यूँ भागे रे
रातों को जागे रे
खुशियां भी गम जैसे झेले
जागती आँखों में
कैसे वो उतरे
नीदें तो दे रे सपन को
मेरे मन तेरे पागलपन को
रातों में चंदा है,
दिन में है सूरज,
हर सू उजालों के घेरे
आँखों की खाई में
छुप के जो बैठे है वो
कटते नहीं है अंधेरे
अपनी चलाता है
रोता है गाता है
काहे सताये रे तन को
मेरे मन तेरे पागलपन को
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