Friday, 1 November 2013

Peele Panne पीले पन्ने - 16

मेरे मन तेरे पागलपन को 
कौन बुझाये तेरी ठंडी अगन को 
दुनिया के मेले में 
घूमे अकेले तू 
काहे को यादों से खेले 
खुद से क्यूँ भागे रे
रातों को जागे रे
खुशियां भी गम जैसे झेले 
जागती आँखों में
कैसे वो उतरे
नीदें तो दे रे सपन को
मेरे मन तेरे पागलपन को

रातों में चंदा है,
दिन में है सूरज,
हर सू उजालों के घेरे
आँखों की खाई में
छुप के जो बैठे है वो
कटते नहीं है अंधेरे
अपनी चलाता है
रोता है गाता है
काहे सताये रे तन को
मेरे मन तेरे पागलपन को




Original Post : https://www.facebook.com/KumarVishwas

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