मुझे दुःख है, कि युवाओं और श्रोताओं के बीच कवि सम्मलेन जनित लोकप्रियता को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में लगा देने के मेरे प्रयास को बार-बार जनता में धूमिल करने की कोशिश कर रहे उन सब पार्टी-पिट्ठुओं को भी इस घोषणा से दुःख हुआ होगा, जो पिछले डेढ़ साल से ये कह रहे थे कि इन्हें मंत्री बनना है, इन्हें विधायक बनना है, चुनाव लड़ने की या नोट कमाने की लालसा आ गई है। मेरा मानना है, कि इस देश में बिना मीडिया के दिखाए, बिना इन अख़बारों में छपे भी मैं करोड़ों लोगों के मोबाईल में और दिलों में 'कोई दीवाना कहता है' बन कर धड़कता था, और जितना प्यार मुझे और मेरी शायरी को मिला है, ये भी यकीन के साथ कह सकता हूँ, कि पृथ्वी छोड़ जाने के सौ साल बाद भी एयर-स्पेस टैक्सी में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूम रहे किसी नवोदित भारतीय युवा वैज्ञानिक को यही गुनगुनाता हुआ देख रहा होऊँगा, क्योंकि "बाबर-अकबर मिट जाते हैं, कबीर सदा रह जाता है।"
इनके लाल-किले और उन पर जमी हुई दम्भ की घास इन्हें मुबारक, और मेरे अंदर से उठता कविता का अनहद नाद मुझे मुबारक! बाकी, इस वीडिओ में…
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