आज 14 Nov बालदिवस है ! भारत और अमेरिका में यही फर्क है कि वहाँ के नेताओं के बच्चों के बारे में उन नेताओं के चुनाव जीतने के बाद दिए गए "आभार-भाषण" से पता चलता है जबकि हमारे यहाँ उनके बारे में कोर्ट के आदेश से हुए "डी.एन.ए. टेस्ट" से पता चलता है ! बकौल राजेश रेड्डी.. "यहाँ हर शख्स, हर पल हादसा होने से डरता है , खिलौना है जो मिटटी का फ़ना होने से डरता है , मेरे दिल के किसी कोने में, एक मासूम सा बच्चा , बड़ों की देख कर दुनिया, बड़ा होने से डरता है.......!
"तेरी दुनिया तेरी उम्मीद तुझे मिल जाए, चाँद इस बार तेरी ईद तुझे मिल जाए, जिसकी यादों में चिरागों सा जला है शब-भर, उस सहर-रुख की कोई दीद तुझे मिल जाए...!!!"
"जब आता है जीवन में ख्यालातों का हंगामा, ये जज्बातों, मुलाकातों, हंसी रातों का हंगामा, जवानी के क़यामत दौर में यह सोचते हैं सब, ये हंगामे की रातें हैं, या है रातों का हंगामा...!!!"
Dont vote for AAP because AAP betrayed ANNA.Just watch n confirm धर्मनिरपेक्ष काँग्रेस,राष्ट्रवादी भाजपा,लोहियावादी-जयप्रकाश पंथी और शेष विशेष सभी राजनेताओं,सभी दलों ने जिन आदरणीय अन्ना हज़ारे जी को इतना सम्मान दिया AAP और केजरीवाल ने उन्ही पूज्य अन्ना जी को धोखा दिया ! आभार तान्या तँवर हमारी आँखें खोलने के लिए ! इस विडिओ को सब ज़रूर देखिये और खूब शेयर कीजिये ताकि देश के असली धोखेबाज़ और आन्दोलन के असली हत्यारे सब के सामने बेनक़ाब हो सके ! अन्यथा हवलदार शिंदे की बात सच हो जायेगी कि "इस देश के लोग कुछ दिन बाद सब भूल जाते हैं,बोफोर्स भूल गए ये सब भी भूल जायेंगे" ! इस बार भूलना नहीं ४ दिसंबर तक याद रखना अन्ना को धोखा देने वालों और आंदोलन के हत्यारों को और बटन दबा कर इन्हे इनकी औकात दिखा देना ! जय हिन्द !
"भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हंगामा, हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा, अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का, मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हंगामा...!!!
हर आपदा के समय दिल खोल कर मातृभूमि के परित्राण के लिए दान देने वाले, रोज़गार के लिए सागर पार गए ,भारत के बेटों ने इस बार "भ्रष्टाचार-मुक्त" भारत की लड़ाई में अगर कुछ दान दे दिया तॊ पूर्व हैड-कांस्टेबल वर्त्तमान गृह-मंत्री को राष्ट्रीय-खतरा दीखने लगा ! 64000 लोगों द्वारा कुल 19 करोड़,जिसमे कुल ५ करोड़ ४२०० से अधिक भारतीय पासपोर्ट धारक अप्रवासी साथियों का है, के हिसाब को वैबसाइट पर न देखने वाले मीडिया में आ कर चिल्ला रहे हैं ,आसन्न हार को सामने देख कर ! खुली चुनौती सरकार को कि 48 घंटे में जाँच कराये अपनी सारी एजेंसिस लगा कर ! पर ज़रा अपनी पार्टी के 2500 करोड़ और बीजेपी के 1500 करोड़ में जो 83% से ज्यादा अज्ञात दानदाताओं से मिले हैं उनके नाम भी तो देश को बताओ ! जब SC बार बार कह रहा है तॊ क्यूँ RTI से बाहर हो सारे दल ? आईने को दोष मत दो हुकमरानो , धूल तुम्हारे चेहरे पर है ,उसे साफ़ करो पहले ! "लहर की प्यास पर पहरे बिठाये जाते हैं, समन्दरों की तलाशी कोई नहीं लेता ?"
"कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को, बस बादल समझता है मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है...!!!"
मैं भाव सूची उन भावों की, जो बिके सदा ही बिन तोले तन्हाई हूँ हर उस ख़त की, जो पढ़ा गया है बिन खोले ||
कुछ कहते हैं मैं सीखा हूँ, अपने जख्मो को खुद सीकर कुछ कहते हें में हँसता हूँ , भीतर भीतर आंसू पीकर कुछ कहते हैं में हूँ विरोध से, उपजी एक खुद्दार विजय कुछ कहते हैं मैं रचता हूँ, खुद मैं मरकर खुद में जीकर लकिन मैं हर चतुराई की, सोची समझी नादानी हूँ लव कुश ही पीर बिना गाई, सीता की राम कहानी हूँ...!!!
"नज़र में शोख़ियाँ लब पर मुहब्बत का तराना है, मेरी उम्मीद की ज़द में अभी सारा ज़माना है, कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको, सिकंदर हूँ मुझे इक रोज़ ख़ाली हाथ जाना है...!!!"
मैं भाव सूची उन भावों की, जो बिके सदा ही बिन तोले तन्हाई हूँ हर उस ख़त की, जो पढ़ा गया है बिन खोले ||
जिनके सपनों के ताजमहल, बनने से पहले टूट गए जिन हाथों में दो हाथ कभी, आने से पहले छूट गए धरती पर जिनके खोने और, पाने की अजब कहानी है किस्मत की देवी मन गयी, पर प्रणय देवता रूठ गए मैं मैली चादर वाले उस, कबिरा की अम्रत वाणी हूँ लुव कुश की पीर ..............................................||
मैं भाव सूची उन भावों की, जो बिके सदा ही बिन तोले तन्हाई हूँ हर उस ख़त की, जो पढ़ा गया है बिन खोले ||
हर आंसू को हर पत्थर तक, पहुचाने की लाचार हूक मैं सहज अर्थ उन शब्दों का, जो कहे गए हैं बिन बोले जो कभी नहीं बरसा खुल कर, मैं उस बादल का पानी हूँ लव कुश की पीर, बिना गाई, सीता की राम कहानी हूँ मैं भाव सूची .....................................................||
"बस्ती-बस्ती घोर उदासी पर्वत-पर्वत खालीपन, मन हीरा बेमोल लुट गया, घिस-घिस रीता तन चन्दन, इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज गज़ब की है, एक तो तेरा भोलापन है, एक मेरा दीवानापन...!!!
"न पाने की ख़ुशी है कुछ, न खोने का ही कुछ ग़म है ये दौलत और शोहरत सिर्फ कुछ ज़ख्मों का मरहम हैं अजब सी कश्मकश है रोज़ जीने रोज़ मरने में मुक़म्मल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है"
"मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है, कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है, यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आँसू है, जो तू समझे तो मोती हैं, जो न समझे तो पानी हैं...!!!
हर पल के गुंजन की स्वर-लय-ताल तुम्ही थे, इतना अधिक मौन धारे हो, डर लगता है, तुम कि नवल- गति अंतर के उल्लास-नृत्य थे, इतना अधिक ह्रदय मारे हो, डर लगता है, तुमको छू कर दसों दिशाएं, सूरज को लेने जाती थी, और तुम्हारी प्रतिश्रुतियों पर, बांसुरियां विहाग गाती थी, तुम कि हिमालय जैसे, अचल रहे जीवन भर, अब इतने पारे-पारे हो डर लगता है, तुम तक आकर दृष्टि-दृष्टि की प्रश्नमयी जड़ता घटती थी, तुम्हें पूछ कर महासृष्टि की हर बैकुंठ कृपा बंटती थी, तुम कि विजय के एक मात्र पर्याय-पुरुष थे, आज स्वयं से ही हारे हो डर लगता है...!!!
मुझे दुःख है, कि युवाओं और श्रोताओं के बीच कवि सम्मलेन जनित लोकप्रियता को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में लगा देने के मेरे प्रयास को बार-बार जनता में धूमिल करने की कोशिश कर रहे उन सब पार्टी-पिट्ठुओं को भी इस घोषणा से दुःख हुआ होगा, जो पिछले डेढ़ साल से ये कह रहे थे कि इन्हें मंत्री बनना है, इन्हें विधायक बनना है, चुनाव लड़ने की या नोट कमाने की लालसा आ गई है। मेरा मानना है, कि इस देश में बिना मीडिया के दिखाए, बिना इन अख़बारों में छपे भी मैं करोड़ों लोगों के मोबाईल में और दिलों में 'कोई दीवाना कहता है' बन कर धड़कता था, और जितना प्यार मुझे और मेरी शायरी को मिला है, ये भी यकीन के साथ कह सकता हूँ, कि पृथ्वी छोड़ जाने के सौ साल बाद भी एयर-स्पेस टैक्सी में अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घूम रहे किसी नवोदित भारतीय युवा वैज्ञानिक को यही गुनगुनाता हुआ देख रहा होऊँगा, क्योंकि "बाबर-अकबर मिट जाते हैं, कबीर सदा रह जाता है।" इनके लाल-किले और उन पर जमी हुई दम्भ की घास इन्हें मुबारक, और मेरे अंदर से उठता कविता का अनहद नाद मुझे मुबारक! बाकी, इस वीडिओ में…
मेरे मन तेरे पागलपन को कौन बुझाये तेरी ठंडी अगन को दुनिया के मेले में घूमे अकेले तू काहे को यादों से खेले खुद से क्यूँ भागे रे रातों को जागे रे खुशियां भी गम जैसे झेले जागती आँखों में कैसे वो उतरे नीदें तो दे रे सपन को मेरे मन तेरे पागलपन को
रातों में चंदा है, दिन में है सूरज, हर सू उजालों के घेरे आँखों की खाई में छुप के जो बैठे है वो कटते नहीं है अंधेरे अपनी चलाता है रोता है गाता है काहे सताये रे तन को मेरे मन तेरे पागलपन को